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सफर - मौत से मौत तक….(ep-38)

समीर अपनी कार में सवार होकर निकल पड़ा घर की तरफ, इस उम्मीद में की शायद अब तक मामला शांत हो चुका होगा।

समीर जैसे ही घर पहुंचा तो घर के बाहर पुलिस खड़ी थी।  पुलिस को देखकर समीर को लगा शायद मामला और बिगड़ चुका था और पुष्पाकली ने पुलिस केस कर दिया होगा। अब पापा को अटेम्प्ट टू रेप के केस में पुलिस पकड़ ले जाएगी। हाँ उन्हें छुड़ाना ज्यादा मुश्किल नही होगा मेरे लिए लेकिन जो दाग लगेगा मेरी जिंदगी में,मेरे कैरियर में ,उसे छुड़ाने में बहुत वक्त लग जायेगा। भगवान ऐसा बाप किसी को ना दे।" समीर सोच रहा था।

"अरे इंस्पेक्टर साहब कैसे आना हुआ"थोड़ा मुस्कराने की कोशिश करते हुए समीर  बोला।

"शायद इसे अभी मालूम नही है" इंस्पेक्टर ने सोचा।

इंस्पेक्टर तो चुप रहा लेकिन अंदर बहुत शोर था, और बहुत सारे लोगो के एक साथ बोलने की आवाजे आ रही थी। और साथ मे रोने की भी आवाजे आ रही थी। समीर इंस्पेक्टर को धक्का देते हुए अंदर की तरफ भागा एयर दौड़ते हुए हॉल में पहुंचा और एक दम से ठिठक गया। चार पांच पुलिस, इशानी की मम्मी पापा , इशानी और एक दो पड़ोसी बैठे हुए थे। और उसके पापा को लेटाया गया था और ऊपर से सफेद चादर ओढ़ी गयी थी।

उनके पास बिलखती रोती इशानी और  साथ मे खुद के आंसू के साथ अपनी बेटी के भी आंसू पोछती हुई उसकी माँ
बैठी हुई थी। अब इशानी के पापा यानी समीर के ससुर समीर के पास आये और उसके कंधे पर हाथ रखा।
    समीर में धीरे धीरे सवेंदना आयी और रोते रोते पापा की तरफ भाग गया। पापा की लाश के छाती में सिर रखकर फुट फुट ले रोने लगा।
और उसे याद आने लगा अपना बचपन जब उसके पापा उसे दाड़ी चुभाकर उसके साथ खेलते थे। उसे हवा मैं उछालकर कैच करते थे। और उसके हर मासूम सवालो का जवाब देते थे। दिन भर के थके हारे जब शाम को घर आते थे और उसके जिद करने पर आंगन में पकड़मपकडाई खेलने लगते थे। तो कभी लुका छिपी

"पापा, कहाँ हो आप……मैं नही ढूंढ पा रहा……" समीर का चिल्लाना जब लुका छिपी खेलते हुए नंदू मिलता नही था।

"ढूंढो बेटा मैं यही तुम्हारे आसपास हूँ, कोशिश तो करो" एक अनजानी जगह से आवाज आती थी, समीर उसी आवाज की तरफ बढ़ते हुए दोबारा बोलता था ताकी आवाज आये तो दिशा का अनुमान लगा सकूंगा

"पापा मुझे नही मिल रहे हो आप, मुझे अकेले डर लगता है। मुझे अकेले क्यो छोड़ दिया आपने" समीर ने कहा।

"नही बेटा! तुम तो बहादुर बच्चे हो, और अब तो तुम बहुत बड़े हो गए हो ना, डर तो बच्चो को लगता है" नंदू ने आवाज देते हुए समीर से कहा।

समीर जान चुका था ये आवाज अलमारी के पीछे से आ रही है। तो अचानक ही उसे पापा से और बात करने की जरूरत महसूस नही हुई। वो दबे पांव अलमारी के पीछे गया और चिल्लाने लगा- "पकड़े गए पकड़े गए, "  और खिलखिलाकर हंसने लगा।

लेकिन वो खिलखिलाकर हँसने की याद उसे इस वक्त और ज्यादा रोने को मजबूर कर रही थी। समीर रोते रोते बोल रहा था- "पापा आप मुझे अकेला छोड़कर क्यो चले गए"

समीर रोये जा रहा था। इशानी भी रो रही थी,  और बाकी सब लोगो की आंखे नम थी, यमराज के भी आंखों में आँसू थे, और ये आंसू कोई पहली बार नही आये थे, नंदू की जिंदगी की सैर करते करते यमराज को बहुत बार आंसू आ चुके थे। आज तक यमराज सिर्फ मृत्यु को जानता  था, सिर्फ मृत्यु की समझ थी उसे, वो सोचता था इंसान की जिंदगी बहुत खूबसूरत है, और सबसे ज्यादा दर्द और दुख इंसान को उसकी मौत देती है। लेकिन आज वो गलत साबित हो चुका था जो दर्द जिन्दगी देती है वो तकलीफ मौत के बाद कहाँ…

भीड़ को चीरते हुए थोड़ी थोड़ी जगह जो लोगो के बीच बची हुई थी वहाँ से घुसते हुए नंदू अंकल भी मुस्कराता हुआ अपनी लाश की तरफ आ रहा था। कुछ ऐसे पड़ोसी भी मौजूद थे जिनको चार साल में पहली बार नंदू अंकल देख रहा था।
तभी नंदू अंकल की नजर पास खड़े तिवारी जी पर पड़ी जो तीन दिन पहले झगड़ा करके गए थे, क्योकि समीर के घर का और उनके घर का पानी एक ही सप्लायर से आता था, उनका कहना था कि तुम लोग मोटर चलाकर बन्द नही करते जिस वजह से हमारे घर मे पानी कम आता, और नंदू को तो ये तक बोल गया था कि तुम बूढ़े हो चुके हो यादाश्त कमजोर हो चुकी है, मोटर चलाना याद रहता है तो बंद करना क्यो भूल जाते हो, किशमिश-बादाम खाया करो, अगर अब मोटर जरूरत से ज्यादा चलाई तो फिर देखना मैं क्या करता हूँ।

"आ गए मेरी मौत का तमाशा देखने…… आ गया तेरी आँखों मे भी पानी….इस पानी का कनेक्शन तो हमारी मोटर से नही है ना" नंदू अंकल ने कहा।

वो कहां कुछ सुनता, बस मन ही मन सोच रहा था कि नंदू जी की यादाश्त कमजोर बुढ़ापे के कारण नही थी, बेचारे डिप्रेशन में थे, ना जाने क्या टेंशन थी उनकी। काश उस दिन झगड़ा नही किया होता, जो बात गुस्से से कही थी काश वही बात प्यार से बोल देता

"अब क्या फायदा….मेरी सलाह मानो तो हर किसी से कर पल प्यार से बात करो, क्या पता कल के दिन आप दोनो में से कोई एक दोबारा बात करने के लिए रहे या नही, जिंदगी का थोड़ी कोई भरोसा कब क्या हो जाये" नंदू अंकल ने कहा क्योकि उन्होंने उसके मन के विचारों को पकड़ लिया था।

अब नंदू अंकल धीरे धीरे यमराज के बगल में खड़े हो गए। यमराज का ध्यान नंदू की पार्थिव शरीर पर था। लेकिन नंदू को उस शरीर से कोई लेना देना नही था। क्योकि शरीर तो एक दिन सबका मिट्टी में मिल जाना है, बस आत्मा हमारी अमर है जो अभी सब देख और सुन रही है।

नंदू अंकल के मन मे एक सवाल था, जिसे पूछने की बेचैनी उसे इस दुख के मंजर में भी बेताब किये हुए थी।
नंदू अंकल कोहनी मार मार कर यमराज को उस सदमे से बाहर ला रहे थे

"क्या हुआ! जिस मौत की सच्चाई सबको बताते फिरते हो आज उसे ही देखकर दुख हो रहा है। इससे पहले कभी किसी की मौत देखी नही किया।" नंदू बोला।

यमराज ने नंदू की तरफ देखा उसे कोई दुख था ही नही, ना अपने मरने का ना ही समीर और इशानी के रोने का। बस आंखों में सवाल थे और यमराज उन सवालो के जवाब देने से बचने के लिए बोला- "क्या हुआ अंकल….आप अपनी मौत पर तो रो लो जरा, देखो तो सही अपने बच्चो को कितनी तकलीफ दे रहे हो आप"

"ये तकलीफ मैं उनको दे नही रहा, ये उन्होंने खरीदे है, शॉपिंग करके लाये है वो….तुम उनकी छोड़ो मुझे एक बात बताओ……अभी थोड़ी देर पहले झील के पास गौरी आयी थी, लेकिन उसने मुझे देखा क्यो नही??"  नंदु अंकल बोला।

"वो आप नही समझोगे, जब आप अभी अपनी मौत का दर्द नही समझ पा रहे,इन लोगो पर जो आपके मौत के बाद गुजरी है, वो नही समझ पा रहे तो आत्माओं का सच जानकर क्या करेंगे"  यमराज दुखी स्वर मे बोला। यमराज को नंदू से ज्यादा नंदू के मौत का था, ना जाने क्यो एक अजीब रिश्ता सा जुड़ गया था नंदू से उसका।

"इंसान जिससे बहुत ज्यादा प्रेम करता है या प्रेम पाता है उसी को समझने की कोशिश करता है। और मैं समझने के लिए तैयार हूं गौरी मुझे क्यो नही देख पाई का सच। लेकिन अगर मेरे मौत के दर्द की बात है तो मेरी मौत मेरी मर्जी से हुई है, क्योकि जीते जी जो मेरे वजूद, मेरे संघर्ष और मेरे प्रेम को नही समझ पाये ऐसे औलाद को दुखी देखकर मुझे दुख जरूर होगा , लेकिन इस बात की खुशी होगी कि उसे अब समझ आ चुका है कि उसने क्या खोया है, उसे समझ आ जायेगा कि उन्होंने जो खो दिया वो जीवनभर के लिए खो दिया है, अब कभी उसे ना खरीद पाएंगे, ना दोबारा जन्म दे पाएंगे, दोबारा बना भी नही पाएंगे।

तभी एक पुलिस वाला पास आया और उसने नंदू की आंखों खुली हुए फूली फूली सी आंखों को बंद कर दिया और मुंह को कफन से ढक दिया । और दो तीन फ़ोटो और खींच ली और सुसाइड का केश बनाकर जाते जाते कह गए
" कल सुबह आप इनका अंतिम संस्कार कर दीजियेगा, हमने अपनी कार्यवाही कर ली है"
कहते हुए पुलिस वाले समीर के कंधे में हाथ से थपकी देते हुए चल पड़े।


वे आँखे खुली रह गई,
मरने के बाद भी।
दिख रहा होगा सबकुछ,
गुजरने के बाद भी।
अपनो का रोता मुखड़ा देखते ,
की किसी ने आकर,
आखिरी बार देखने नही दिया
उन्हें पास पाकर,
आँखे धीरे से बंद कर दिया।
आखिर तुमने ऐसा क्यो किया।


अब कुछ देर के लिए सब शांत हो चुका था। सब एक दूसरे से नंदू की तारीफ किये जा रहे थे। और इतनी तारीफ कर रहे थे कि नंदू अंकल खुद सोच में डूब गया कि आखिर उसने ऐसा कब किया होगा,

नंदू अंकल और यमराज जाकर पीछे कोने में बैठ गए, नंदू अंकल अपनी तारीफें सुन सुनकर पकने ही लगा था कि एक बार फिर उसे याद आ गयी कि अगर उसने गौरी को देखा और सुना तो गौरी उसे क्यो देख या सुन नही पाई।
नंन्दू ने एक बार फिर यमराज को कोहनी से मारते हुए कहा - "बताओ ना….गौरी ने मुझे क्यो नही देखा??"

"यार आप मानोगे नही बिना बताये….इस बात का जवाब मैंने शुरुआत में क्लीयर कर दिया था कि भूतकाल यानी कि अतीत में जाने के बाद तुम सिर्फ एक दर्शक बनकर रहोगे, तुम इंसान और आत्मा दोनो को देख पाओगे लेकिन तुम्हे कोई नही देख सकता, और वर्तमान में आने के बाद तुम्हे आत्माएं देख सकती है, लेकिन इंसान नही। इसलिए गौरी से मिलने के लिए आपको वर्तमान काल मे पहुँचने तक इंतजार करना होगा।" यमराज ने कहा।

"ओह…… अब समझा, वो जो गौरी थी वो आज नही उस दिन की थी……अच्छा तो ये बताओ हम वर्तमान काल मे कब पहुंचेंगे….??" नंदू अंकल ने सवाल किया।

"आज वर्तमान काल के हिसाब से आपको मरे हुए बारह दिन हो गए है, कल तेरहवीं है, पिंडदान करके समीर अडोसी पड़ोसी और रिश्तेदारों को दावत देगा और पंडित जी को दान दक्षिणा देकर आपकी आत्मा की शांति की प्रार्थना करेगा।" यमराज बोला।

"यानी कि अभी तेरह दिन तक मैं गौरी से नही मिल सकता" नंदू अंकल ने कहा।

"नही!..." यमराज बोले।

तभी दो औरतें भाग भाग कर रोते  हुए घर के अंदर आयी, जिनका नाम था सरला और तुलसी, रोते बिलखते अपने भाई कि लाश पर जा लिपटे, तुलसी की तो जैसे जान ही निकली जा रही थी। क्योकि उसके लिए उसका सबकुछ उसका भाई था। उसके भाई ने उसकी शादी अपने दम पर की थी, उसके भाई ने एक बार दहेज के लिए उसे घर से निकाले जाने पर कुछ ही दिन में उसे वापस पूरे साजो सामान के साथ ससुराल में छोड़ा था। आज वो भी हमेशा हमेशा के लिए छोड़कर जा चुका था। दोनो बहने अपने बचपन के दिन याद कर रहे थे जब घर वालो से छिपकर शाम के वक्त नंदू दोनो को रिक्शे में घुमाने ले चलता था। दिनभर सवारी ढोने के बाद भी शाम को बहनों के साथ मस्ती और खेल में अलग ही मजा था। इन दिनों तो कुछ ज्यादा ही बात होने लगी थी दोनो बहनों से, क्योकि नंदू अकेले अकेले परेशान हो जाता था तो कभी किसे कभी किसे फोन कर लेता था। रोज एक टाइम दोनो बहनों से हालचाल पूछना आदत सी थी नंदू की, कभी नंदू भूल जाता तो बहने खुद ही कर लेती थी आज क्यो नही किया करके।

कल दिन में ही दोनो से बात हुई थी,नंदू ने कहा था तुलसी से की शाम को टाइम लगेगा फिरु फोन करूँगा, लेकिन शाम को नही कर पाया फोन।

यही सब सोचकर दोनो बहनों के रोने की आवाज ना सिर्फ घर में गूंज रही थी जबकि पुरे गली में गूंज उठी।


हम उन्हें रोता छोड़ गए
जिन्होंने कभी नही गम दिए।
किसे कसूरवार ठहराए
किस्मत ने जो जख्म दिए
आंखे नही खुल सकी
लाख कोशिश करने के बाद भी।
दिख रहा होगा सबकुछ,
गुजरने के बाद भी।


सुबह हुई, धुप निकली थी और पंडित जी ने भी अपने थैले से धूप बत्ती निकाल ली, और गरुड़ पुराण पढ़ने लगे। कभी पानी का छीटा मारकर उस मृत शरीर को नहलाते तो कभी समीर को जौ-पत्ती पकड़ाकर चारो दिशा में फेंकने को कहते, उसके बाद समीर के सिर को मुंडवा दिया गया, सारे बालो को हटाकर , दाड़ी भी हटवा दी गयी, और उसे नहलाकर अर्थी में कुछ पिंडो को रखने को कहा। और इसी तरह मृत शरीर के साथ थोड़ी देर रिति रिवाज और अंतिम संस्कार के नाम पर खेल खेला जाने लगा। और जैसे ही अर्थी को विदाई देने की बारी आई तो एक बार फिर पूरा परिवार एक बार और रोने लगा। क्योकि यह जीवन की अंतिम विदाई थी। जब लड़कियों की डोली विदाई में लोगो के आंसू नही थमते , फिर ये तो अर्थी की विदाई थी।


तकलीफ इतनी,अपने रो रहे,
रो रहा जमाना है।
आखिर क्यो मरके
शमशान की तरफ ही जाना है।
पहले जब कोई रोते थे,
मैं भी रोया करता था।
अपने जख्मो को भूलकर
दूसरो के जख्मो को भरता था।
पर आज सब रो रहे।
क्यो सुख गया मेरे आँखों का पानी।
मैंने सोचा खत्म हो जाती होगी,
पर खत्म होती नही मरकर भी कहानी।
ये मेरे लिए रोते है,
हर गम से उभरने के बाद भी।
दिख रहा होगा सबकुछ,
गुजरने के बाद भी।


शमशान पहुँचने के बाद नंदू की लाश को लकड़ी के ठेले के ऊपर रखकर उसपर पेट्रोल गिराया गया। उसके बाद चंदन की लकड़ी और घी डालते हुए समीर के हाथ मे अग्नि दे दी गयी। समीर को अग्नि के चारो तरफ घूमते हुए चक्कर लगाने के बाद याफ देने को कहा। जो कि देना ही था।


जला दिया अरमानों को,
उनकी अर्थी के साथ।
क्यो जलाया उन्हें
इतनी बेदर्दी के साथ।
मन के सवाल मन में
रह गए सारे।
अब भी सवालों के
कम नही हुई बौछारें।
अपने शोक में डूबे है
हमारे शोक से उबरने के बाद भी।
दिख रहा होगा सबकुछ
गुजरने के बाद भी।
वे आंखे खुली रह गयी
मरने के बाद भी।


समीर अपने पिताजी का अंतिम संस्कार करने के बाद उन आग की लपटों में अपने पापा को गुजरते हुए देख रहा था। आज कभी ना मिटने वाली कमी समीर के जिंदगी में आ चुकी थी। समीर के लिए उसके पापा ही नही उसकी मम्मी भी आज ही मरी थी। अब तो शायद समीर की माँ उसकी कोई मन्नत पूरी नही कर पायेगी, क्योकि जहाँ वो रहती थी , वो आशियाना  आज जल के राख हो चुका था।  

कहानी जारी है

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3 Comments

Amir

22-Nov-2021 12:49 AM

Sach hi h jane vale ki kmi tbhi khlti jb vo sath nhi hota

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Shalini Sharma

08-Oct-2021 09:29 PM

Nice

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Niraj Pandey

07-Oct-2021 01:50 PM

बहुत ही शानदार👌

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